विवाह संस्कार करें सिर्फ वैदिक रीति से.... Description Of the Puja
विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है – विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे ले कर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है, विवाह संस्कार हिन्दू धर्म संस्कारों में ‘त्रयोदश संस्कार’ है। स्नातकोत्तर जीवन विवाह का समय होता है, अर्थात् विद्याध्ययन के पश्चात विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना होता है। यह संस्कार पितृ ऋण से उऋण होने के लिए किया जाता है। मनुष्य जन्म से ही तीन ऋणों से बंधकर जन्म लेता है- ‘देव ऋण’, ‘ऋषि ऋण’ और ‘पितृ ऋण’। इनमें से अग्रिहोत्र अर्थात यज्ञादिक कार्यों से देव ऋण, वेदादिक शास्त्रों के अध्ययन से ऋषि ऋण और विवाहित पत्नी से पुत्रोत्पत्ति आदि के द्वारा पितृ ऋण से उऋण हुआ जाता है।
उद्देश्य ..
हिंदू धर्म शास्त्रों में हमारे सोलह संस्कार बताए गए हैं। इन संस्कारों में काफी महत्वपूर्ण विवाह संस्कार। शादी को व्यक्ति को दूसरा जन्म भी माना जाता है क्योंकि इसके बाद वर-वधू सहित दोनों के परिवारों का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। इसलिए विवाह के संबंध में कई महत्वपूर्ण सावधानियां रखना जरूरी है। विवाह के बाद वर-वधू का जीवन सुखी और खुशियोंभरा हो यही कामना की जाती है।
संक्षेप में पूजा विधि निम्नलिखित है- ...
सामान्य व्यवस्था के साथ जिन वस्तुओं की जरूरत विशेष कमर्काण्ड में पड़ती है, उन पर प्रारम्भ में दृष्टि डाल लेनी चाहिए। उसके सूत्र इस प्रकार हैं। वर सत्कार के लिए सामग्री के साथ एक थाली रहे, ताकि हाथ, पैर धोने की क्रिया में जल फैले नहीं। मधुपर्क पान के बाद हाथ धुलाकर उसे हटा दिया जाए। यज्ञोपवीत के लिए पीला रंगा हुआ यज्ञोपवीत एक जोड़ा रखा जाए। विवाह घोषणा के लिए वर-वधू पक्ष की पूरी जानकारी पहले से ही नोट कर ली जाए। वस्त्रोपहार तथा पुष्पोपहार के वस्त्र एवं मालाएँ तैयार रहें। कन्यादान में हाथ पीले करने की हल्दी, गुप्तदान के लिए गुँथा हुआ आटा (लगभग एक पाव) रखें। ग्रन्थिबन्धन के लिए हल्दी, पुष्प, अक्षत, दुर्वा और द्रव्य हों। शिलारोहण के लिए पत्थर की शिला या समतल पत्थर का एक टुकड़ा रखा जाए। हवन सामग्री के अतिरिक्त लाजा (धान की खीलें) रखनी चाहिए, हिन्दू धर्म में विवाह के समय वर-वधू द्वारा सात वचन लिए जाते हैं। इसके बाद ही विवाह संस्कार पूर्ण होता है।
वर-वधू के पद प्रक्षालन के लिए परात या थाली रखे जाए। पहले से वातावरण ऐसा बनाना चाहिए कि संस्कार के समय वर और कन्या पक्ष के अधिक से अधिक परिजन, स्नेही उपस्थित रहें। सबके भाव संयोग से कमर्काण्ड के उद्देश्य में रचनात्मक सहयोग मिलता है, विवाह का विषय बहुत बड़ा है और एक पेज के माध्यम से इसको पूरा समझा पाना मुश्किल है इसीलिए और अधिक जानकारी के लिए आप हमसे संपर्क करें..!!
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विवाह एक पवित्र बंधन है जिसमें बंधने से पहले कई प्रकार के विचार-विमर्श किये जाते हैं। इनमें युवक-युवती की सहमति के बाद कुंडली मिलान और इसके आधार पर कुंडलियों के आधार पर विवाह मुहूर्त निकाला जाता है। इनमें ग्रहों की दशा व नक्षत्र आदि का विश्लेषण किया जाता है। वर और कन्या की कुंडली में विद्यमान ग्रह-नक्षत्रों के मुताबिक विवाह अर्थात् लग्न का समय निकाला जाता है. जो विवाह का लग्न होता है यही युवक-युवती के परिणय बंधन में बंधने का मुहूर्त कहलाता है, विवाह का विषय बहुत बड़ा है इसीलिए बेहतर है की अधिक जानकारी के लिए आप हमसे संपर्क करें ताकि हम आपको पंचांग से देखकर दिन के अनुसार सही समय व सही मुहूर्त की जानकारी दे सके क्यूँकि हिन्दू पंचांग के अनुसार चातुर्मास 4 महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल देवउठनी एकादशी तक चलती है। हिन्दू धर्म में ये 4 महीने भक्ति, ध्यान, जप, तप और शुभ कर्मों के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं। हालांकि इन 4 महीनों के दौरान विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। दरअसल देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु 4 माह के लिए क्षीर सागर में शयन करते हैं, इसलिए इस अवधि में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश समेत अन्य शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं। कार्तिक मास में आने वाली देवउठनी एकादशी पर जब भगवान विष्णु निंद्रा से जागते हैं, उसके बाद विवाह कार्य शुरू होते हैं।
Auspicious Day | Date and Tithi | Muhurat time & Nakshtra |
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शुक्रवार | 8 नवंबर 2019 (एकादशी) | 12:24- 30:39 बजे तक (उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र) |
शनिवार | 9 नवंबर 2019 (द्वादशी) | 06:39 - 10:14 & 11:26 - 14:55 बजे तक (उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र) |
रविवार | 10 नवंबर 2019 (त्रयोदशी ) | 06:40 - 16:30 बजे तक (रेवती नक्षत्र) |
गुरुवार | 14 नवंबर 2019 (द्वितीया) | 06: 43 - 25:11 बजे तक (रोहिणी नक्षत्र) |
गुरुवार | 21 नवंबर 2019 (नवमी) | 18:29 - 22:17 बजे तक(उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र) |
शुक्रवार | 22 नवंबर 2019 (दशमी) | 09:01 - 16:41 बजे तक (उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र) |
गुरुवार | 28 नवंबर 2019 (द्वितीया) | 08:22 - 16:18 बजे तक (मूल नक्षत्र) |
शुक्रवार | 29 नवंबर 2019 (तृतीया) | 06:55 - 07:33 बजे तक (मूल नक्षत्र) |
शनिवार | 30 नवंबर 2019 (चतुर्थी ) | 18:05 - 23:14 बजे तक (उत्तराषाढ़ा नक्षत्र) |
रविवार |
1 दिसंबर 2019 (पंचमी) |
11:29 - 30:57 बजे तक (श्रवण नक्षत्र) |
सोमवार | 2 दिसंबर 2019 षष्ठी) | 06: 57 - 11:43 बजे तक (श्रवण नक्षत्र) |
मंगलवार | 3 दिसंबर 2019 सप्तमी) | 06:58 - 14:16 बजे तक (धनिष्ठा नक्षत्र) |
रविवार | 8 दिसंबर 2019 एकादशी) | 08:29 - 17:15 बजे तक (अश्विनी नक्षत्र) |
मंगलवार | 10 दिसंबर 2019 (त्रयोदशी) | 29:57 - 31:04 बजे तक (रोहिणी नक्षत्र) |
गुरुवार | 12 दिसंबर 2019 पूर्णिमा) | 07:04 - 30:18 बजे तक (मृगशिरा नक्षत्र) |